Guru Jambheshwar Mandir Jambholav Dham | गुरु जंभेश्वर मंदिर जाम्भोलाव धाम
गुरु जम्भेश्वर मंदिर जाम्भोलाव : यह तीर्थ राज्य की फलौदी तहसील जिला जोधपुर से 24 कि.मी. उत्तर-पूर्व दिशा में स्थित है। यहां एक बड़ा व दर्शनीय तालाब है जिसको स्वयं जाम्भोजी ने १५६६ वि संवत में खुदवाना शुरू किया था, जिसकी १५७० वि. संवत के बाद तक खुदाई होती रही। इसी तालाब के ठीक उत्तर दिशा की तरफ अत्यन्त निकट ही मन्दिर है।
जाम्भोलाव पर बने मन्दिर में सफेद मकराने के पत्थर का एक सिंहासन है। कहते हैं कि इसी पर बैठकर गुरु जाम्भोजी तालाब को खुदाई का काम देखते थे। जाम्भोलाव धाम से थोड़ी दूरी पर जाम्भा नामक गांव है। यहां साधुओं की दो परम्पराएं हैं- एक आगूणी जागा और दूसरी आथूणी जागां। तालाब के पास पशुओं की कर माफी का एक शिलालेख लगा हुआ है।
जाम्भोलाव को विसन तीर्थ, कलियुग का तीर्थ, विसन तालाब एवं मुकुट मणि आदि नामों से जाना जाता है। इस जाम्भाणी सरोवर का लोक प्रचलित नाम जाम्भोलाव है। किदवंती है कि इस स्थान पर कपिल मुनि ने तपस्या की थी और पाण्डवों ने भी यज्ञ किया था। गुरु जाम्भोजी ने इसे कलियुग में प्रकट किया था।
जांभोलाव धाम में माधो मेला की शुरुआत
जांभोलाव धाम में वर्षभर में दो मेले लगते है- एक चैत्र की अमावस्या को और दूसरा भादपद की पूर्णिमा को। दोनों मेलो को संत विल्होजी ने प्रारम्भ करवाये थे। पहला मेला सम्वत् 1648 में प्रारम्भ किया या । दूसरे मेले के लिये विल्होजी ने पली गांव के माधो जी गोदारा का सहयोग लिया था। यह माधो मेला के नाम से से जाना जाता है। जाम्भाणी संतों ने इसका महत्व अड़सठ तीर्थ से भी अधिक माना है। आने वाले श्रद्धालु तालाब में स्नान करते है, मिट्टी निकालते है, साधुओं को भोजन करते हैं और सूत फिराते हैं। कहते हैं जाम्भोलाव तालाब में स्नान करने से शारीरिक और मानसिक रोग ठीक हो जाते हैं।
जाम्भोलाव, बिश्नोई समाज में सामाजिक फैसले के लिए प्रसिद्ध है यहां किए गए फैसले अंतिम माने जाते हैं।
जाम्भोलाव में दो प्रकार के संत परंपराएं होने के कारण मंदिर व तालाब की व्यवस्था आधे माह आथूणी जागा और आवे माह अागुणी जागा के सन्त करते हैं।
जंभ सरोवर जिसमें नहाने मात्र से मनुष्य के संपूर्ण शारीरिक व मानसिक रोग कट जाते हैं
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंजय हो गुरु देव की
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