Guru Jambheshwar Temple | श्री गुरु जंभेश्वर मंदिर : बिश्नोई समाज के प्रमुख धाम एवं साथरी

Guru Jambheshwar Temple | श्री गुरु जंभेश्वर मंदिर : बिश्नोई समाज के प्रमुख धाम एवं साथरी 


गुरु जाम्भोजी बिश्नोई समाज के प्रवर्तक है। बिश्नोई समाज में गुरु जाम्भोजी को साक्षात् विष्णु का अवतार माना जाता है। और इसी रुप गुरु जाम्भोजी की पूजा की जाती है। बिश्नोई समाज में गुरु जाम्भोजी से बढ़कर कोई नहीं है। गुरु जंभेश्वर महाराज से संबंधित जितने भी महत्वपूर्ण स्थान है वो सभी बिश्नोई समाज के लिए पूजनीय स्थल है।

गुरु जाम्भोजी ने अपने जीवन काल में जिन स्थानों का भ्रमण किया था और और वहां ठहर कर ज्ञान का उपदेश दिया था वे स्थान साथरी कहलाते हैं। इन पवित्र स्थानों पर गुरु जाम्भोजी के मंदिर बने हुए हैं और वहां हर अमावस्या को बिश्नोई समाज के मेले लगते हैं। जिनमें देश के कोने -कोने से श्रद्धालु बड़े ही आदर भाव से गुरु जाम्भोजी के दर्शनार्थ पहुंचते हैं। जांभोजी के इन मंदिरों साथियों में नित्य प्रति गुरु जंभेश्वर शब्दवाणी के सस्वर पाठ के साथ हवन अवश्य ही होता है और मंदिर के आसपास पक्षियों के लिए चुगा बिखेरा जाता है। 

  

बिश्नोई समाज में श्री गुरु जंभेश्वर भगवान के 8 मंदिरों को प्रमुख माना जाता है जिन्हें अष्ट धाम के नाम से जाना जाता है। इनके अलावा भी बहुतेरे धाम साथरी बने हुए हैं।

 

श्री गुरु जम्भेश्वर मंदिर नामक इस ब्लॉग पर हम गुरु जम्भेश्वर भगवान से संबंधित सभी साथरी/धामों की जानकारी अद्यतन करेंगे।



FAQ : श्री गुरु जंभेश्वर मंदिर से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न?


Q 1. बिश्नोई समाज के अष्ट धाम कौन कौन से हैं?

पीपासर, समराथल, मुकाम, जांगलू, लोदीपुर, रोटू, जाम्भोलाव और लालासर साथरी उपर्युक्त आठों धाम बिश्नोई समाज में अष्ठ धाम के नाम से प्रसिद्ध है

Q 2. मध्य भारत का एकमात्र गुरु जम्भेश्वर मंदिर कौन सा है?

 मध्य प्रदेश के हरदा के निकटवर्ती नीमगांव में स्थित धाम मध्य भारत का एकमात्र श्री गुरु जंभेश्वर मंदिर है।

Q 3. जाम्भोलाव धाम को अन्य किस नाम से जाना जाता है?

जाम्भोलाव धाम बिश्नोई समाज में मुकुट मणि के नाम से जाना जाता है।

Q 4. गुरु जंभेश्वर मंदिर को किन-किन नामों से जाना जाता है?

श्री गुरु जंभेश्वर मंदिर साथरी/धाम/मंदिर आदि नामों से जाना जाते है।

Q 5. गुरु जंभेश्वर मंदिर पर वर्ष भर में कितने मेले लगते हैं?

यूं तो हर अमावस्या को बिश्नोई समाज के लोग श्री गुरु जंभेश्वर भगवान के दर्शनार्थ मंदिर आते हैं । परंतु वर्ष भर में दो मुख्य मेले फाल्गुन व आश्विन की अमावस्या     को मेले लगते है।

Q 6. पीपासर धाम को अन्य किस नाम से जाना जाता है?

गुरु जंभेश्वर भगवान ने पीपासर की पावन धरा पर अवतार लिया, इस कारण लिए पीपासर धाम बिश्नोई समाज में अवतार स्थल के नाम से भी जाना जाता है।

Q 7. समराथल धोरा किन-किन नामों से जाना जाता है?

गुरु जांभोजी ने समराथल धोरा पर विराजमान होकर बिश्नोई पंथ की स्थापना की इसलिए समराथल धोरा धाम को बिश्नोई समाज का आद्य स्थल भी कहते हैं। समराथल को सोवन नगरी, थलां, थल, संभरि आदि से भी जाना जाता है।

Q 8. मुकाम को बिश्नोई समाज में क्यों महत्वपूर्ण माना जाता है?

मुकाम मंदिर में गुरु जांभोजी की समाधि स्थित है। मुकाम से ही बिश्नोई समाज की सर्वोच्च सामाजिक संस्था महासभा का संचालन होता है। मुकाम में प्रतिवर्ष बिश्नोई समाज के दो मेले लगते हैं जिनमें बिश्नोई समाज के खुले अधिवेशन का आयोजन किया जाता है। अपने आराध्य देव की समाधि स्थल होने के कारण बिश्नोई समाज में मुकाम मंदिर का विशेष महत्व व स्थान है।

Q 9. मुकाम धाम को अन्य किन किन नामों से जाना जाता है?

मुकाम धाम को मुक्ति धाम मुकाम, निज मंदिर, समाधि स्थल आदि नामों से जाना जाता है।मुकाम मंदिर की भव्यता व बेजोड़ निर्माण शैली को देखकर लोग अनायास ताजमहल से तुलना करते हैं हालांकि मुकाम मंदिर का धार्मिक महत्व है व अद्भुत निर्माण शैली व पर्यावरण संरक्षण को प्रेरित करता अपने आप में श्रेष्ठ है।

Q 10. जाम्भोलाव धाम किन-किन नामों से जाना जाता है?

जाम्भोलाव धाम को मुकुट मणि, जंभ सरोवर, विसन तालाब, जाम्भाणी तीर्थ स्थल आदि नामों से जाना जाता है।

Q 11. जांगलू धाम में गुरु जांभोजी की कौन-कौन सी वस्तुएं दर्शनार्थ रखी हुई है?

जांगलू धाम में गुरु जांभोजी की चोला व चिंपी  रखी हुई हैं। जांगलू धाम को चिंपी-चोळा दाम व भसेवड़ा आदि नामों से जाना जाता है।

Q 12. रोटू धाम में गुरु जांभोजी ने खेजड़ियों का बाग कब लगाया?

गुरु जांभोजी ने अक्षय तृतीया विक्रमी संवत 1572 को जोखोजी भादू की पुत्री उमा/नौरंगी को भात भरा था। लोक व्याख्यानों के अनुसार  जिस स्थान पर आकर गुरु जंभेश्वर जी महाराज रूके वहां पर एक सुखा हुआ खेजड़ी का पेड़ था जो स्वतः ही हरा-भरा हो गया था। उसी समय अनुयायियों की प्रार्थना पर जांभोजी ने खेजड़ियों का बाग लगा दिया था। यह कहा जाता है कि रोटू ग्राम में चिड़िया व अन्य पक्षी फसलों से दाना नहीं चुगते किंतु यहां खेजड़ियों में बैठकर विश्राम करते हैं।

Q 13. लोदीपुर धाम में वार्षिक मेला कब लगता है?

लोदीपुर धाम में प्रति वर्ष चैत्र की अमावस्या को विशाल मेला लगता है। 

Q 14. लालासर साथरी धाम किन-किन नामों से जाना जाता है?

लालासर में बिश्नोई समाज के प्रवर्तक गुरु जाम्भोजी ने मिगसर वदी नवमी सम्वत् 1593 को हरि कंकेड़ी के नीचे अपना भौतिक शरीर त्याग दिया था। इस कारण लालासर साथरी धाम निर्वाण धाम व कंकेड़ी धाम के नाम से भी जाना जाता है। 

Q 15. खेजड़ली धाम को अन्य किस नाम से जाना जाता है?

खेजड़ली में संवत् 1787 में वृक्षों की रक्षा के लिए 363 बिश्नोईयों ने प्राणोत्सर्ग किया। वृक्षों के लिए शहीद हुए 363 बिश्नोई स्त्री व पुरुषों की याद में खेजड़ली में विश्व का एकमात्र पर्यावरण मेला लगता है इसलिए खेजड़ली धाम को पर्यावरण तीर्थराज के नाम से भी जाना जाता है।

Q 16. माता अमृता देवी बिश्नोई स्मारक एवं वन जागरुकता पार्क कहां स्थित है?

माता अमृता देवी बिश्नोई स्मारक एवं वन जागरुकता पार्क मेहराणा धोरा, पंजाब में स्थित है।

Q 17. बगरेवाला धोरा धाम को किन-किन नामों से जाना जाता है?

बगरेवाला धोरा धाम को सैंसे भगत का धोरा, जिंझाला धोरा आदि नामों से जाना जाता है।

Q 18. जाजीवाल धोरा विश्व भर के पर्यटक में क्यों प्रसिद्ध है?

जाजीवाल धोरा सुदूर मरू मध्य स्थित होने के बावजूद प्राकृतिक मनोहरम दृश्यों के लिए जाना जाता है। जाजीवाल धोरा बिश्नोई समाज की गौरव परंपरा पर्यावरण संरक्षण का जीवंत स्वरूप है। 

जोधपुर आने वाले देसी व विदेशी पर्यटक प्रकृति के इस अद्भुत रूप को निहारने अवश्य ही जाजीवाल धोरा आते हैं। जाजीवाल धोरा पर निर्भीक विचरण करते वन्य जीव, मदमस्त होकर नाचते मोर व पर्यावरण शुद्धि के लिए हवन करते बिश्नोई संत व लोग निश्चित ही यहां आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को पर्यावरण संरक्षण को प्रेरित करेंगे।

Q.19 बिश्नोई मंदिर डाबला क्यों प्रसिद्ध है?

एक बार श्री बुड्ढा जी खिलेरी बकरियां चरा रहे थे कि उनमें से एक बकरी गुम हो गई तब श्री बुड्ढा जी खिलेरी अपनी गुम हुई बकरी के बारे में पूछने हेतु समराथल धोरे पर गुरु जाम्भोजी के पास पहुंचे। गुरु महाराज जाम्भोजी ने श्री बुढा जी खिलेरी को गुम हुई बकरी के बारे में बताया और साथ ही धर्म ज्ञान का उपदेश दिया जिससे प्रभावित होकर श्री बुढा जी बिश्नोई पंथ में दीक्षित हुए बाद में उन्होंने घर-बार त्याग दिया और आज जहां बुड्ढा जोहड़ डाबला में मन्दिर निर्मित है, उस स्थान पर भगवान की भक्ति शुरू कर दी।

Q.20 जम्भेश्वर मन्दिर समेलिया धाम का ऐतिहासिक महत्व क्यों है?

समेलिया में बिश्नोई समाज के संस्थापक गुरु जम्भेश्वर भगवान का चार सौ साल पुराना ऐतिहासिक भव्य मन्दिर स्थित है।



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