Bishnoi Mandir Dabla : बिश्नोई समाज का ऐतिहासिक तीर्थ स्थल

 बिश्नोई मंदिर बुड्ढा जोहड़ डाबला : बिश्नोई समाज का ऐतिहासिक तीर्थ स्थल 

बिश्नोई मंदिर बुड्ढा जोहड़ डाबला : बिश्नोई समाज का ऐतिहासिक तीर्थ स्थल


भारत ऋषि-मुनियों, देवताओं, महापुरुषों और रण में जूझने वाले योद्धाओं की धरती है। यह वही भूमि है। जहां पर जन्म लेने हेतु देवता तरसते हैं। यहां पर राजस्थान की धूल भरी आंधियां तो चलती ही है साथ ही कश्मीर की घाटी की बर्फीली हवाओं की बयार भी बहती है। राजस्थान का रेतीला इलाका पानी सा बहते धोरों के लिए प्रसिद्ध है इन्हीं चलायमान रेतीले टीलों के इर्द-गिर्द एक नहीं अनेक श्रद्धा के केन्द्र निर्मित है जो आज भी धर्म को मानने वालों पर अपनी छाप छोड़े हुए है। राजस्थान में देशनोक की करणी माता, सालासर के बालाजी जी अपने आप में एक विशेष पहचान बनाए हुए हैं।

राजस्थान प्रदेश के श्रीगंगानगर जिले की रायसिंह नगर तहसील में बिश्नोई समाज का एक ऐसा तीर्थ स्थल है जो आज सम्पूर्ण राजस्थान ही नहीं वरन् पूरे उत्तर भारत में अपनी एक विशेष पहचान बना चुका है। इस तीर्थ स्थान का नाम है- बिश्नोई मन्दिर बुड्ढा जोहड़ डाबला। बुड्ढा जोहड़ डाबला यह नाम आज बिश्नोई समाज के बच्चे-बच्चे की जुबान पर है। यह स्थान आज बिश्नोई समाज के तीर्थ स्थल के रूप में ख्याति प्राप्त कर चुका है।


इतिहास के झरोखों से बिश्नोई मंदिर बुड्ढा जोहड़ डाबला

इतिहास की अनेक विशेषताओं को अपने गर्भ में छुपाये बुड्ढा जोहड़ डाबला का बिश्नोई मन्दिर आज श्रीगंगानगर ही नहीं सम्पूर्ण राजस्थान के कोने-कोने में अपनी सौंधी महक फैला चुका है। वर्तमान समय में इस मन्दिर की ख्याति दिनों दिन बढ़ती जा रही है।

आइये इस मन्दिर के निर्माण के पीछे के इतिहास की ओर एक नजर दौड़ाते हैं। बात उस समय की है जब बिश्नोई धर्म का सूर्योदय इस भारत की पावन धरा पर हो चुका था। श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान की झीणी वाणी का प्रभाव सब धर्मों की ओर पड़ रहा था। लोग समराथल आते, गुरु जाम्भोजी से अपनी जिज्ञासा पूछते और समाधान होने पर बिश्नोई धर्म को स्वीकार कर लेते। कहा जाता है कि एक बार श्री बुड्ढा जी खिलेरी बकरियां चरा रहे थे कि उनमें से एक बकरी गुम हो गई तब श्री बुड्ढा जी खिलेरी अपनी गुम हुई बकरी के बारे में पूछने हेतु समराथल धोरे पर गुरु जाम्भोजी के पास पहुंचे। गुरु महाराज जाम्भोजी ने श्री बुढा जी खिलेरी को गुम हुई बकरी के बारे में बताया और साथ ही धर्म ज्ञान का उपदेश दिया जिससे प्रभावित होकर श्री बुढा जी बिश्नोई पंथ में दीक्षित हुए बाद में उन्होंने घर-बार त्याग दिया और आज जहां बुड्ढा जोहड़ डाबला में मन्दिर निर्मित है, उस स्थान पर भगवान की भक्ति शुरू कर दी।


इस घटना के बारे में सबदवाणी में एक सबद भी है जो गुरु जाम्भोजी ने श्री बुढा जी खिलेरी को सुनाया था। श्री बुड्ढा जी की तपोस्थली होने के कारण बिश्नोई समाज के प्रमुख लोगों ने इस स्थान पर एक छोटे से मन्दिर का निर्माण करवा दिया। श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान की कृपा से यहां पर दुःखों का निवारण होने लगा। तब इस क्षेत्र के बिश्नोई समाज के लोगों ने एक समिति बनाकर इस तपो भूमि के विकास का निर्णय लिया।


बुड्ढा जोहड़ ( सरोवर ) का शिलान्यास बिश्नोई रत्न चौ. भजनलाल बिश्नोई के कर कमलों से हुआ 


 सन् 1985 के दशक में इस स्थान पर प्राचीन बुद्ध सरोवर का शिलान्यास का कार्यक्रम रखा गया। प्राचीन बुड्ढा सरोवर के शिलान्यास का कार्यक्रम समिति के तत्कालीन प्रधान श्री रामलाल जी भांभू की देखरेख में हुआ था। इस कार्यक्रम में हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री बिश्नोई रत्न स्व. श्री चौधरी भजनलाल बिश्नोई शरीक हुए थे। तब से इस स्थान पर विकास की लहर बह रही है। वर्तमान समय में इस स्थान पर लगभग एक करोड़ रुपये की लागत से भव्य मन्दिर का निर्माण समिति द्वारा करवाया गया है।


 मन्दिर के पास ही प्राचीन बुढा सरोवर स्थित है। इस सरोवर के पानी की विशेषता यह है कि सरोवर के पानी के स्नान करने से असाध्य रोग, लाइलाज बीमारियां कट जाती है। मन्दिर के बेसमेंट में प्राचीन गुफा है जिसमें 35 कमरे है। यह एक प्रकार से भूलभूलैया सी नजर आती है।


मन्दिर समिति द्वारा दान दाताओं व जन सहयोग से महिला शिक्षा को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से श्री गुरु जम्भेश्वर बालिका उ.मा.वि. का संचालन किया जा रहा है। इसके अलावा संस्था द्वारा श्री गुरु जम्भेश्वर गौशाला का संचालन भी समिति कर रही है। समिति द्वारा मन्दिर परिसर में अमृता देवी बिश्नोई वन्य जीव रक्षा उद्यान भी निर्मित किया गया है जिसमें सौ से ऊपर कृष्ण मृग है। इसके अलावा चोट ग्रस्त, शिकारियों द्वारा घायल, असहाय, निरीह मृगों का इलाज समिति द्वारा करवाया जाता है। वन्य जीवों के इलाज का सरा खर्चा समिति द्वारा वहन किया जाता है।


बिश्नोई मंदिर बुड्ढा जोहड़ डाबला में हर अमावस्या को भरता है मेला


इस मन्दिर पर हर अमावस्या को मेला भरता है जिसमें आसपास के सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु आकर सरोवर में स्नान कर पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं। समिति द्वारा हर अमावस्या पर जागरण का आयोजन भी करवाया जाता है जिसमें स्थानीय गायणाचार्य गुरु महाराज जाम्भोजी के उपदेशों का प्रचार-प्रसार करते हैं। मन्दिर परिसर में धर्मशाला भी बनी हुई है जिसमें ठहरने की उत्तम व्यवस्था है। मन्दिर समिति द्वारा मन्दिर परिसर में छायादार पौधे व खेजड़ी के वृक्ष लगे हुए है।


बिश्नोई मन्दिर समिति बुड्ढा जोहड़ डाबला करती है मंदिर की देखरेख

मन्दिर की सम्पूर्ण व्यवस्था की देखरेख एवं समिति द्वारा किए जा रहे कार्यों के संचालन हेतु बिश्नोई मन्दिर समिति बुढ्ढा जोहड़ डाबला का गठन किया गया है। समिति रजिस्ट्रार संस्थाएं श्रीगंगानगर द्वारा पंजीकृत है। मन्दिर समिति के अनेक निष्ठावान कार्यकर्ताओं व स्वयंसेवको की टीम श्रद्धालुओं की सेवा हेतु हर समय तैयार रहती है। बिश्नोई समाज श्रीगंगानगर का गौरव है बुड्ढा जोहड़ डाबला का मेला। आस्था का सागर, श्रद्धा का समुद्र और धार्मिक विश्वास की मिसाल ही नहीं बिश्नोई समाज श्रीगंगानगर का जाम्भोलाव तीर्थ है बिश्नोई मंदिर बुड्ढा जोहड़ डाबला



- पवन ज्याणी (पत्रकार)

गांव: 83 LNP जोड़कियां, पदमपुर (SGNR)



Highlights:

  • बिश्नोई मन्दिर समिति डाबला
  • बुड्ढा जी खिलेरी का बिश्नोई पंथ में दीक्षित होना
  • अमृता देवी बिश्नोई वन्य जीव रक्षा उद्यान, बिश्नोई मन्दिर डाबला
  • Bishnoi Mandir Dabla : Historical pilgrimage site of Bishnoi Samaj



0/Post a Comment/Comments