गुरु जंभेश्वर साथरी लोहावट | Guru Jambheshwar Mandir lohawat
बिशनोई समाज में लोहावट एक "साथरी "के रूप में मान्यता रखती है। यह स्थान जोधपुर जिले के फलोदी कस्बे से 25 किमी दक्षिण में स्थित है। लोहावट साथरी लोहावट रेलवे स्टेशन से तीन किमी उत्तर की और स्थित है। गुरु जाम्भोजी अपने भ्रमण काल के दौरान अपने साथ के लोगों के साथ कई दिन तक लोहावट में रूके थे तथा ज्ञानोउपदेश किया था। इसलिए यह स्थान साथरी के रूप में मान्य हुआ।
संवत् 1584 में जोधपुर के शासक गांगा के पुत्र कुंवर मालदेव ने मूला पुरोहित के साथ इसी स्थान पर जाम्भोजी से मुलाकात की थी। लोहावट में ही भगवान जाम्भोजी ने मालदेव व मूला पुरोहित के प्रति शब्द-94 "सहस्र नाम साईं भल शिंभू,म्हे उपना आद मुरारी।शब्द-95"वाद विवाद फिटाकर प्राणी,छोङो मन हट का भाणो। "तथा शब्द-105"आप अलेख उपन्ना शिंभू,निरह निरंजन धंधूकारू। "सुनाया था। साथरी के पास ही दक्षिण-पश्चिम की और स्थित रेत के ऊंचे टीले को समराथल का रूप मानकर "धोक धोरो " के रूप में मान्यता हैं। कहते हैं कि इसी स्थान पर जाम्भोजी ने हवन किया था।
साथरी के निज मंदिर में बायें पैर का निशान बना हुआ हैं। ऐसा प्रसिद्ध है कि 'ईलोल' (आत्मानुभूति) आने पर उनका एक पैर एक पत्थर पर टिका और यह निशान बन गया। पंथ के मान्य प्रसिद्ध 24 भंडारों में लोहावट भी शामिल है। साहबराम राहङ कृत "जम्भसार "में जिक्र आता है कि "लोहावट भंडारों भयो "लोह जङ कहियै नाथ। चांदो चोकस नाम हैं,ढाका जाकी जात।" इस प्रकार बिशनोई पंथ में लोहावट साथरी का पुरातन अत्यधिक महत्व है। वर्तमान में इस साथरी में पशु-पक्षियों के लिए एक चुग्गाघर हैं जहाँ प्रतिदिन मणो अनाज डाला जाता है। घायल हिरणो के लिए आवास पिंजरा भी हैं। साथरी के सामने ही हिरण रक्षार्थ शहीद बीरबलराम खीचङ की मूर्ति लगी हुई हैं।
विकास के लगे पंख- गुरु जम्भेश्वर साथरी लोहावट
मेला परिसर में भामाशाह स्थानीय ग्राम पंचायत,पंचायत समिति व विधायक कोष से एलईडी लाईट,मुख्य द्वार,रोङ,हॉल आदि विकास कार्य हुए। प्रतिवर्ष फाल्गुन की अमावस्या को यहाँ विशाल मैला भरा जाता है। जिसमें दूर-दराज से हजारों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं।
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